Saturday 18 September, 2010

कहानी : बॉस का डर और लेट लतीफ कर्मचारी

विवेक कुमार

संजय की घड़ी के कांटे 10 बजा रहे हैं। भीड़ भरी बस में वह कभी अपनी घड़ी को देखता है और कभी खिड़की से बाहर रास्ते को। अभी तो लाल चौक ही आया है, ऑफिस के पास वाले चौराहे तक बस को पहुंचने में अभी कोई दस मिनट और लगेंगे और वहां से तेज भी चलो तो दफ्तर पहुंचते- पहुंचते पांच मिनट तो लग ही जाते हैं। आज फिर बॉस डांट लगाएंगे और सारा दिन चौपट। बॉस ने पीछले सप्ताह जो काम दिया था वह भी अधूरा है, पूरा हो भी कैसे रीना के चक्कर में सब गड़बड़ हो जाता है। दफ्तर के सौ काम और उसी बीच उसका फोन कॉल। लम्बी बातें करना तो कोई उससे सीखे। उसे क्या पता सामने वाले पर क्या गुजरती है। प्राइवेट जॉब है, काम सही से करो तो भी लाख मुसिबत और काम देर से पूरा किया तो नौकरी पर बन आती है। खैर मोहतरमा को इससे क्या लेना- देना।

संजय इन खयालों में डूबा था कि ऑफिस के पास वाला चौराहा आ गया। बस रूकते ही संजय हड़बड़ी में उतरा और हनुमान जी को याद करते हुए दफ्तर की ओर लपका। वह मन ही मन सोच रहा था भगवान करे आज बॉस देर से आएं और उसकी जान बचे। ऑफिस में दाखिल होते ही संजय एक निगाह सभी कर्मचारियों पर डालता है। पिंकी आज भी वक्त पर नहीं आई है। वह समय से आती ही कब है, उसे तो कोई कुछ नहीं कहता। एक मैं ही हूं, जिसकी हर गलती काबिले सजा होती है।

स्वेता जी आज लाल रंग के ड्रेस में बड़ी अच्छी लग रही हैं। पास वाले चेयर पर बैठा मोहन क्यों मूंह लटकाए है, लगता है उसकी पत्नी ने उसे आज भी खाना नहीं दिया है। इतने में मीना उसे हल्की आवाज में हाय बोलती है। बोलती क्या है बस हाथ से इशारा भर करती है। वह भी जानती है कहीं बॉस ने इस ओर देख लिया तो इसकी शामत तय है। रानी जी तो आज पूरी रानी ही बनके आईं हैं, बस मेकअप भारी है और कपड़े हल्के। इनके कपड़े चाहे कितने भी छोटें क्यों न हों, परंतु नखरें पूरे चार गज के हैं। नखरें हो भी क्यों न जब मां- बाप ने नाम ही रानी रखा है और सुंदर हो हैं ही।

दीपक और राजू तो बड़ी लगन से काम कर रहे हैं। मानों कम्प्यूटर में ही समा जाएंगे। जय भगवान अब बॉस की केविन पार करनी है, बस इस ओर न देखें। पर बॉस तो बॉस हैं जैसे ही केविन के पास पहुंचा, बॉस ने कम्प्यूटर से नजरें हटाईं और सीधे संजय की ओर तान दीं। जैसे कोई ब्रिटिस काल का तोप निहत्थे की ओर तान दिया गया हो और पूछा जा रहा हो अब बताओ क्या हाल है। संजय ने सहमें स्वर में बॉस को नमस्कार कहा तो उन्होंने भी इशारे से जबाव दिया और अपने काम में तल्लीन हो गए। चलो जान बची, यह सोच संजय तेज कदमों से अपने सीट पर पहुंचा और लगा बिजली सी तेज गती से पीछला प्रोजेक्ट पूरा करने। कुछ समय बाद ही चपरासी आया और कहता है संजय बाबू साहब ने आपको बुलाया है। यह सुन संजय के हांथ एक बार फिर सीने पर पहुंच गए।

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